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एक थी यमुना। वह बहुत प्यारी थी, ममता की मूरत थी, दादी-नानी की लाडली थी। कई किस्से-कहानियाँ उसके बारे में प्रचलित थीं। गाँव-गाँव में सदियों से उसकी महानता के बारे में कहा सुना गया था। वह जीवनदायनी थी। देवी थी। वह देवी गंगा की जुडुआ बहन थी। लोग उसे माँ समझते थे, पर वह एक नदी थी। हजारों गाँवों को सींचने-सवाँरने वाली, लाखों-करोडों लोगों को सदियों से पालने-पोसने वाली, वास्तव में वह मानव सभ्यता की जननी थी। मनुष्य ने जब पहला कदम उसके गोद में रखा तो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह अपनी माँ के आँचल की छाँव में आ गया हो। वही जुडाव जो अपनी माँ से होता है लोगों ने महसूस किया था। लोग उसकी शरण में सुरक्षित रहते थे।
पाषाण युग में न घर था, न पक्का मकान था, न खेती-बारी थी, लोग पेडों के नीचे, गुफाओं में शरण लेते थे। जानवरों के मांस से पेट भरते थे। उस समय न हैंड पाईप था, न डिस्टिल वाटर की फैक्ट्रियाँ, लोगों को वह अपना जल पिलाकर प्यास बुझाती थी। लोग उसके जल में नहा कर रोग मुक्त होते थे। जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता गया, लोगों की नदियों पर निर्भरता बढती गयी। खेती, यातायात, सामानों की ढुलाई, इन सभी जरुरतों की पूर्ति के लिए उसने सुविधायें दी। सैकडों राजा, राज-घराने उसके तट पर विकसित हुए, फले-फुले। हजारों सालों में उसने कई उतार-चढाव देखें। वैदिक युगों से लेकर आज तक कई घटनाओं की वह प्रत्यक्षदर्शी रही।
वैदिक युग में ऋषि मार्कण्डेय ने यमुना तट पर मार्कण्डेय पुराण की रचना की थी। महाभारत काल में हस्तिनापुर की राजधानी ईन्र्दप्रस्थ भी इसी के किनारे बसा हुआ था। भगवान वासुदेव की बाल लीला की एकमात्र साक्षी है वह। सेल्यूकस और मेगास्थनीज जैसे यूनानी दूत भी इसकी महत्ता से प्रभावित थे। चालुक्य वंश, मौर्य वंश, शुंग राजा, कुषाण राजा, गुप्त राजवंश, चोल शासन इत्यादि के कार्यकाल में यमुना और गंगा दोआब क्षेत्र सत्ता का प्रमुख केन्द्र हुआ करता था। मथुरा कई राजाओं की राजधानी थी। दिल्ली, वृन्दावन, आगरा और प्रयाग जैसे पौराणिक शहर इसी के तट पर पल्लवित हुए थे। हिन्दू मान्यता के अनुसार यमुना सूर्य की पुत्री एवं यम की बहन थी। बल्लभाचार्य ने अपने पुस्तक यमुनाष्टकम में इसे भगवान कृष्ण की प्रेमिका के रुप में वर्णित किया है।
यमुना यमुनोत्री से निकलकर उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाना होते हए 1370 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर उत्तर प्रदेश के प्रयाग में गंगा से मिलती है। इस पूरी यात्रा में इसका जल एकदम साफ, निर्मल और पापों को मिटाने वाला हुआ करता था। परन्तु आज स्थिति बदल गयी है। इधर कुछ वर्षों से इसका जल गंदा और अपवित्र हो गया है। यह नदी मल और गंदगी ढोनेवाली नाली में परिवर्तित हो गई है।यह सब कैसे हुआ ? जिसने हजारों वर्षों से लोगों की गंदगी साफ किया हो, लोगों का पाप धोया हो आज मात्र कुछ वर्षों में इतनी गंदी हो गई! आश्चर्य की बात है ? लोग कहते हैं कि वर्तमान समय विकास का है। आज जितनी तेजी से मानव सभ्यता का विकास हो रहा है इससे पहले कभी नहीं हुआ। किन्तु ऐसे विकास का क्या अर्थ जिससे अमृत बरसाने वाली नदियाँ भी जहरीली हो जाय। यह निश्चित ही अदूरदर्शितापूर्ण विकास का परिणाम है।
द्वापर युग में कालिया नाग के विष से यमुना जहरीली हो गई थी। भगवान कृष्ण ने कालिया का संहार कर यमुना को विष मुक्त किया था। आज वह कौन पुरुष है जो यमुना का उद्धार करेगा ? आज न राजतंत्र है और न राजा। प्रजातंत्र में प्रजा के द्वारा चुनी गई सरकार है, और हर पाँच साल पर सरकार के लिए चुनाव होता है, जो व्यक्ति सत्ता में होता है उनकी प्राथमिकता सरकार में बने रहने की होती है। उन्हें ईतनी फुर्सत कहाँ है कि इन सब बातों का ध्यान रख सके। फिर भी ऐसा नहीं है कि इसे साफ करने की योजना नहीं बनी । आज से लगभग दो दशक पहले यमुना एक्सन प्लान शुरु किया गया था। यमुना एक्सन प्लान-1, उसके बाद यमुना एक्सन प्लान-2 और अब यमुना एक्सन प्लान-3, परन्तु यह प्लान प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए नाकाफी था। अदूरदर्शितापूर्ण योजना और इन योजनाओं को लागू करने में शिथिलता के कारण ही यमुना की यह दशा हो गई है।
लोकतंत्र में कोई भी काम बिना जनआन्दोलन के संभव नहीं है, चाहे वह भ्रष्टाचार के खिलाफ हो या फिर महिलाओं के प्रति अपराध कम करने की बात हो। जब तक लोग सडक पर नहीं उतरते, सरकार के खिलाफ आवाज नहीं उठाते तबतक उनके कान पर जूँ तक नहीं रेंगती है। परन्तु दुख की बात है जनआन्दोलन तभी शुरु होता है जब सर के उपर से पानी बहने लगता है, जब लोगों की सहन शक्ति जबाव दे जाती है, बर्दाश्त की सीमाऐं समाप्त हो जाती हैं। यमुना के जल में बहने वाले विष की मात्रा पता नहीं कब उस सीमा तक पहुँचेगी, जब लोगों की सहन शक्ति जबाव दे देगी! लोगों का एक विशाल समूह सैलाब बनकर जन आन्दोलन पर उतर आयेगा। शायद उस दिन जब यमुना के आस-पास रहने वाले सैकडों पशु-पक्षी मरने लगेंगे, भूगर्भीय जल भी विषाक्त हो जाएगा, भारी संख्या में लोग बिमार हो कर मर रहे होंगे। संभवतः उसी दिन यमुना के पुनर्उद्धार की शुरुआत होगी।
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